उत्तराखण्डराज्य

उत्तराखंड में बंदरों पर जिम्मेदारी का भ्रम खत्म

देहरादून। उत्तराखंड में बंदरों के आतंक से कई क्षेत्र प्रभावित हैं। स्थिति ये है कि पलायन आयोग ने भी कई ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन के पीछे बंदरों को वजह माना है। ऐसी स्थिति में वन महकमे को तब राहत की खबर मिली है जब शहरी विकास विभाग ने एक आदेश कर शहरी क्षेत्रों में अपने अधिकारियों को बंदरों से संघर्ष पर दिशा निर्देश जारी किए हैं।
उत्तराखंड में बंदरों के इंसानों के साथ संघर्ष को लेकर जिम्मेदारी पर भ्रम खत्म हो गया है। हालांकि, इसको लेकर साल 2013 में ही एक मानक संचालन प्रक्रिया जारी कर दी गई थी। जिसमें शहरी विकास विभाग को भी शहरी क्षेत्र में बंदरों के आतंक पर जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन इसके बावजूद वन विभाग ही ग्रामीण क्षेत्र से लेकर शहरी क्षेत्रों तक में बंदरों के आतंक से छुटकारे पर काम कर रहा था।
हालांकि इसको लेकर अप्रैल महीने में ही प्रमुख सचिव वन आर के सुधांशु ने वन विभाग के साथ ही शहरी विकास विभाग के अधिकारियों की एक बैठक लेते हुए इसके लिए ठोस रणनीति बनाने के निर्देश दिए थे। इसके बाद अब शहरी विकास विभाग ने इस पर अपने विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को दिशा निर्देश जारी किए हैं।
अपर सचिव शहरी विकास गौरव कुमार ने एक पत्र जारी करते हुए विभिन्न नगर निगम के नगर आयुक्तों और अधिशासी अधिकारियों को मानक संचालन प्रक्रिया का पालन करने के निर्देश दिए हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया है कि शहरी क्षेत्र में बंदरों के आतंक से लोगों को राहत देने के लिए शहरी विकास विभाग की पहली जिम्मेदारी होगी। वन विभाग इसमें शहरी विकास विभाग का सहयोग करेगा।
बंदरों को लेकर वन विभाग द्वारा किए गए प्रयासों पर नजर दौड़ाएं तो राज्य में साल 2015-16 से बंदरों के बंध्याकरण के लिए चल रहे अभियान में अब तक 119970 बंदरों का बंध्याकरण किया जा चुका है। अकेले साल 2024-25 में 30845 बंदरों का बंध्याकरण किया गया है।
दूसरी तरफ राज्य में बंदरों से लोगों को हो रहे नुकसान का रिकॉर्ड भी काफी चौंकाने वाला है। वन विभाग के आंकड़ों को देखें तो राज्य में बंदर और लंगूर से साल 2013 में जहां एक व्यक्ति घायल हुआ। साल 2016 में दो लोगों को बंदरों ने घायल किया। वहीं साल 2024 में यह आंकड़ा 102 रहा। इस साल अब तक 23 लोगों को बंदर हमला करके घायल कर चुके हैं।
इस मामले में प्रमुख वन संरक्षक वन्य जीव आरके मिश्रा कहते हैं कि वन विभाग और शहरी विकास विभाग की जिम्मेदारी को लेकर पूर्व में एक आदेश जारी किया गया था। यदि शहरी विकास विभाग भी अब इसमें बढ़-चढ़कर काम करता है तो वन विभाग भी अपनी मदद देकर बंदरों की समस्या पर काफी हद तक कंट्रोल कर सकता है।

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