सत्संग से व्यक्ति को जीवन के चक्रव्यूह से मिलती है मुक्ति : भारती
कहा, जिसके ‘मन की चादर’ साफ है, ‘ईश्वर’ सदा उसके साथ हैं

देहरादून। मानव जीवन का सर्वाेच्च उद्देश्य आत्मिक उत्थान और ईश्वर की अनुभूति है। इस पथ का सबसे प्रभावी साधन सत्संग है, जो व्यक्ति को आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक पहुंचाते हुए उसके भीतर सकारात्मक परिवर्तन लाता है। इसी उद्देश्य के साथ ‘दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान’ के तत्वावधान में आज देहरादून में एक भव्य सत्संग का आयोजन किया गया।
सद्गुरु आशुतोष महाराज की कृपा से आयोजित इस कार्यक्रम की शुरुआत वेदपाठियों द्वारा वेद मंत्रों की दिव्य ध्वनि से हुई। इसके उपरांत भजनों की मधुर प्रस्तुति में उपस्थित श्रद्धालु भाव विभोर हो उठे।
साध्वी सुभाषा भारती ने भजनों की व्याख्या करते हुए कहा कि सच्चा सुख केवल ईश्वर की भक्ति में ही है। उन्होंने कहा कि “भक्ति स्वतंत्र सकल सुख खानी, बिनु सतसंग न पावहिं प्रानी। सत्संग से व्यक्ति को जीवन के चक्रव्यूह से मुक्ति मिलती है और वह परम आनंद को प्राप्त करता है।
मुख्य प्रवचन में साध्वी जाह्नवी भारती ने कहा कि जैसे नदी अविरल बहती हुई अपने लक्ष्य समुद्र की ओर बढ़ती जाती है, वैसे ही मनुष्य को भी अपने परम लक्ष्यकृईश्वर प्राप्तिकृकी ओर बढ़ना चाहिए। लेकिन माया के प्रभाव में आकर यह लक्ष्य अक्सर भुला दिया जाता है। उन्होंने कबीर साहब का संदर्भ देते हुए कहा, कबीरा वो दिन याद कर…। साध्वी जी ने समझाया कि परम गुरु ही वह शक्ति हैं, जो मानव को ब्रह्मज्ञान प्रदान कर उसे पुनः उसके असली लक्ष्य की ओर जागरूक करते हैं।
उन्होंने कहा कि संसार में रहते हुए भी गुरु कृपा से मनुष्य ईश्वर से जुड़ सकता है और जीते मुक्त होकर मोक्ष का अधिकारी बन सकता है।
समापन में साध्वी अरुणिमा भारती ने कहा कि एक सच्चे भक्त की यही प्रार्थना होनी चाहिए “हे प्रभु, हमें अपने संग ले चलो। उन्होंने कहा कि जब भक्ति में यह भाव आ जाता है कि प्रभु तू मिला तो जग मिला, तू नहीं तो कुछ भी नहीं, तब ईश्वर का मार्ग सुगम हो जाता है। उन्होंने रामकाज की आतुरता पर बल देते हुए कहा कि ऐसा भक्त वह सबकुछ पा लेता है जिसकी उसने कल्पना भी नहीं की होती।
कार्यक्रम के उपरांत श्रद्धालुओं के लिए भंडारे का भी आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया।