ईश्वर तर्क का नहीं, अपितु प्रत्यक्ष दर्शन का विषय – डॉ. सर्वेश्वर
देहरादून। दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी की असीम अनुकंपा से देहरादून के निरंजन फार्म, दून यूनिवर्सिटी रोड में दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा आयोजित सात-दिवसीय श्री शिव कथा के तृतीय दिवस डॉ. सर्वेश्वर जी ने सती प्रसंग का सुमधुर भजनों के साथ व्याख्यान किया। भगवान शिव अपनी अर्धांगिनी सती को संग लेकर अगस्त्य मुनि जी के आश्रम में प्रभु राम की पावन कथा श्रवण करने जाते हैं, परन्तु तर्क बुद्धि से प्रेरित हुईं सती कथा का मर्म ही नहीं जान पाती। जिस कारण जब वह प्रभु श्री राम को साधारण नर-लीला करते हुए देखती हैं तो उन्हें संशय आ जाता है कि वह ईश्वर जो परब्रह्म, सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, मायारहित और इच्छा रहित है, वह शरीर कैसे धारण कर सकता है। महादेव के कहने पर वह प्रभु श्री राम की परीक्षा लेने गईं तो असफल हो गईं। आकर शिव से असत्यवादन कर दिया जिसके कारण उनका शिव से पुनः वियोग हो गया। भगवान शिव स्वयं अपने मुख से बताते हैं कि ईश्वर तर्क-वितर्क, मन, वाणी और बुद्धि से अति परे है। तर्क बुद्धि से दिया जाता है और जिसकी बुद्धि जितनी अधिक तीव्र होगी, वह उतना ही अच्छा तर्क देगा। रावण ने भी, जो वेदों का ज्ञाता था, बुद्धि से राम जी को समझने का प्रयास किया और असफल हो गया। ईश्वर तर्क का नहीं, अपितु प्रत्यक्ष दर्शन का विषय है। समय के पूर्ण सद्गुरु द्वारा दिव्य दृष्टि उद्घाटित होने के पश्चात ही ईश्वर को देखा व समझा जा सकता है। अतः एक तत्ववेत्ता सद्गुरु की कृपा से ब्रह्मज्ञान प्राप्त करना चाहिए।
आज भी कार्यक्रम में अनेक गणमान्य अतिथियों की गरिमामयी उपस्थिति रही। श्री सुनील उनियाल गामा पूर्व मेयर देहरादून, श्री बालादत्त बेलवाल पूर्व डिप्टी सचिव इत्यादि महानुभाव कार्यक्रम में पधारे और अपने समय को सार्थक किया।
कथा का समापन प्रभु की पावन आरती से किया गया तत्पश्चात! प्रसाद का वितरण करते हुए तृतीय दिवस की भगवान शिव कथा को विराम दिया गया।