डॉक्टर की इंतजार में लाइन में लगे रह गए मरीज

निशांत भारती
देहरादून । दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल कुव्यवस्थाओं से उबर नहीं पा रहा है। अस्पताल में हर रोज मरीज और तीमारदार भटकने को मजबूर हैं। यह स्थिति ओपीडी से लेकर इमरजेंसी और इंडोर तक हर तरफ देखने को मिलती है। इमरजेंसी या इंडोर में तो सीनियर डॉक्टर्स और नर्सेज मरीज को देखने तक को तैयार नहीं होते। वहीं, ओपीडी में कब तक मरीज देखेंगे, कब चलते बनेंगे, इसका कोई पता नहीं रहता।
दून अस्पताल राजधानी में आम आदमी की पहुंच वाला सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है। दून मेडिकल कॉलेज के अंतर्गत संचालित इस अस्पताल में इंफ्रास्ट्रक्चर की कोई कमी नहीं है, लेकिन अव्यवस्थाएं भी कम नहीं हैं। डॉक्टर्स और नर्सिंग स्टाफ यहां मनमजी का मालिक है। कब आना है, कब जाना है, किसे देखना है, किसे नहीं, यह सब उनकी अपनी इच्छा पर निर्भर करता है।
यहां तक कि इमरजेंसी में भी किसी मरीज या घायल के पहुंचने पर सीनियर डॉक्टर्स उसे देखने तक नहीं आते। मेडिकल कॉलेज में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे इंटर्नस ही आमतौर पर मरीजों अथवा घायलों को अटैंड करते हैं। अस्पताल के स्थायी नर्सिंग स्टाफ के बजाय नर्सिंग की पढ़ाई कर रहे इंटर्नस ही घायल व मरीज के ट्रीटमेंट में जुटते हैं। सीनियर डॉक्टर्स से तीमारदार गुहार लगाते रह जाते हैं, लेकिन मजाल क्या वे टस से मस हो जाएं। अलबत्ता, ऊंची पहुंच वाले मामले जरूर अपवाद हैं।
मरीज इंतजार करते रह गए, डॉक्टर आए नहीं
सोमवार को अस्पताल की ओपीडी में मरीजों को डॉक्टर का लंबा इंतजार करके बिना चिकित्सीय परामर्श के ही लौटने को मजबूर होना पड़ा, लेकिन डॉक्टर्स थे कि पलट कर आए ही नहीं। दरअसल, मामला दून अस्पताल की ओपीडी बिल्डिंग के तीसरे तल का है। सोमवार सुबह से ही मरीज डॉक्टर से मिलने के लिए पर्चा बनवाकर अपने नंबर का इंतजार करते रहे। ओपीडी बिल्डिंग के तीसरे तल के मेडिसन विभाग में कमरा नंबर-303 में डॉ. हरीश बसेरा बैठते हैं। कमरे के बाद काफी संख्या में मरीज थे। डॉक्टर आए, कुछ देर मरीजों को देखा और करीब 1:20 बजे अपने कक्ष से निकल गए। मरीजों का कहना है कि डॉक्टर के जाने के बाद कर्मचारी यही कहते रहे कि डॉक्टर साहब थोड़ी देर में आएंगे। मरीज काफी समय तक लाइन लगाकर खड़े रहे। लेकिन, डॉक्टर साहब नहीं आए। करीब एक घंटे बाद दोपहर सवा 2 बजे कक्ष के बाहर तैनात कर्मचारी ने मरीजों को सूचना दी कि डॉक्टर अब नहीं आएंगे। इसके चलते मरीजों को मायूस होकर वापस लौटना पड़ा। लोगों ने वहां अपनी नाराजगी भी जताई, लेकिन राहत नहीं मिली।