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मानव तन ईश्वर का, ब्रह्मज्ञान गुरु का दिव्य उपहार है : भारती

देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के निरंजनपुर स्थित आश्रम में इस रविवार को साप्ताहिक आध्यात्मिक कार्यक्रम श्रद्धा और भक्ति भाव से संपन्न हुआ। दिव्य गुरु आशुतोष महाराज की कृपा से आयोजित इस कार्यक्रम का आरंभ संगीतमय भजनों की सुंदर प्रस्तुति से हुआ, जिन्होंने वातावरण को भक्तिरस से सराबोर कर दिया।
कार्यक्रम का संचालन साध्वी अनीता भारती ने किया। उन्होंने भजनों की गूढ़ व्याख्या करते हुए कहा कि मनुष्य जीवन का उद्देश्य केवल सांसारिक सुखों तक सीमित नहीं है। शास्त्रों के अनुसार, इसी मानव शरीर में रहते हुए ईश्वर की प्राप्ति संभव है, और यह तभी संभव होती है जब मनुष्य पूर्ण गुरु की शरण में जाकर ब्रह्मज्ञान प्राप्त करे।
साध्वी जी ने भगवान शिव द्वारा माता पार्वती को दिए गए उपदेशों का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘परमगुरु’ ही ऐसे ब्रह्मनिष्ठ ज्ञानी होते हैं, जो ब्रह्मज्ञान के माध्यम से शिष्य को ईश्वर से जोड़ते हैं और जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिलाते हैं।
मुख्य वक्ता के रूप में साध्वी सुभाषा भारती जी ने संगत को संबोधित करते हुए कहा कि मनुष्य तन एक दुर्लभ ईश्वरीय अवसर है, जिसे पाकर भी यदि हम आत्मिक उत्थान की दिशा में न बढ़ें, तो यह जीवन व्यर्थ चला जाता है। उन्होंने कहा कि जब गुरु जीवन में आते हैं तो वे शिष्य को अपने रंग में रंग देते हैं, उसे दिव्यता की ओर प्रेरित करते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के बाद शिष्य का स्वयं का पुरुषार्थ भी आवश्यक होता है। गुरु कृपा का पात्र वही बनता है जो निष्क्रियता और आलस्य को छोड़कर पूरी निष्ठा से साधना में लगा रहता है। उन्होंने समझाया कि जैसे वर्षा के लिए बादलों की आवश्यकता होती है, वैसे ही कृपा के लिए साधक का पुरुषार्थ आवश्यक है।
साध्वी जी ने “श्वांस-श्वांस सुमिरन” की महिमा को रेखांकित करते हुए कहा कि यह अभ्यास जीवन को प्रभुमय बना देता है। अंत में उन्होंने बताया कि परमगुरु अपने ब्रह्मज्ञान के माध्यम से शिष्य की श्वासों में परमात्मा के शाश्वत नाम को प्रकट करते हैं। यही सच्चा सुमिरन है, जो साधक को स्थिरता, शांति और आत्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। कार्यक्रम का समापन प्रसाद वितरण के साथ किया गया।

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