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स्कोलियोसिस से पीड़ित नोएडा की बच्ची की अमृता हॉस्पिटल में हुई सफल सर्जरी, हर 10 में से 1 बच्चे को है स्कोलियोसिस होने का खतरा 

कक्षा 10 की छात्रा ने किशोरावस्था में होने वाली स्कोलियोसिस से सिर्फ 5 दिनों में तेजी से ठीक होकर स्कूल जाना शुरू किया

स्कोलियोसिस आमतौर पर 10 से 15 साल की उम्र के बीच होता है और यह लड़कियों में लड़कों की तुलना में लगभग 7 गुना अधिक होती है
नई दिल्ली: नोएडा की एक होनहार कक्षा 10 की छात्रा 13 साल की आद्या ने जैसे ही अपने बोर्ड एग्ज़ाम खत्म किए, उसकी ज़िंदगी अचानक बदल गई। उसे एडोलेसेंट आइडियोपैथिक स्कोलियोसिस नाम की बीमारी हो गई। इस बीमारी में रीढ़ की हड्डी असामान्य तरीके से मुड़ जाती है। यह बीमारी उसके शरीर में स्थायी विकलांगता और आंतरिक समस्याएं पैदा कर सकती थी। लेकिन कुछ ही दिनों में आद्या ने अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद में एक जटिल रीढ़ की सर्जरी करवाई। सर्जरी के बाद वह न सिर्फ शारीरिक रूप से ठीक हुई, बल्कि मानसिक रूप से भी और मजबूत महसूस करने लगी।
एडवांस्ड मेडिकल टूल्स जैसे इन्ट्राऑपरेटिव न्यूरो-मॉनिटरिंग (IONM), अल्ट्रासोनिक बोन स्केल्पल और सेल सेवर्स का उपयोग करते हुए अमृता हॉस्पिटल के स्पाइन सर्जरी विभाग के प्रमुख डॉ. तरुण सूरी की अगुवाई में सर्जन टीम ने यह जीवन बदलने वाली सर्जरी बेहद सटीकता से की। आद्या को सर्जरी के सिर्फ पांच दिन बाद ही हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई। वह फिर से आत्मविश्वास और नई ऊर्जा के साथ पढ़ाई में जुट गई। सर्जरी के तीन हफ्ते बाद उसने स्कूल जाना शुरू कर दिया और दो महीने में वह पूरी तरह से नियमित क्लास अटेंड करने लगी।
डॉ. तरुण सूरी ने बताया, “जब आद्या हमारे पास आई, तब उसकी रीढ़ की हड्डी लगभग 50 डिग्री तक मुड़ चुकी थी, इस हालत में सर्जरी करना बहुत जरूरी था। यह झुकाव सिर्फ दिखने की बात नहीं थी। अगर समय पर इलाज न होता, तो यह बच्ची के फेफड़ों और दिल की कार्यक्षमता को भी नुकसान पहुंचा सकता था। वह बोर्ड एग्ज़ाम की तैयारी कर रही थी और सामाजिक दबाव भी झेल रही थी, इसलिए हम जानते थे कि इसका भावनात्मक असर भी बहुत गहरा होगा। हमारी टीम का मकसद सिर्फ बेहतरीन इलाज देना नहीं था, बल्कि उसे पूरी तरह शारीरिक और मानसिक रूप से ठीक करना भी था। हम इसमें कामयाब हुए और उसे एक स्वस्थ जीवन जीने में मदद कर पाए।”
हर 10 में से 1 बच्चे को स्कोलियोसिस होता है, फिर भी यह बीमारी अक्सर समय पर पहचानी नहीं जाती। यह सबसे ज्यादा 10 से 15 साल की उम्र के बच्चों में पाई जाती है। लड़कियों में यह समस्या लड़कों की तुलना में 7 गुना ज्यादा होती है। गंभीर केसों में खासकर जब रीढ़ की हड्डी 40 डिग्री से ज्यादा मुड़ जाती है, तो सर्जरी करवाने की जरूरत पड़ती है।
स्कोलियोसिस की परेशानी शारीरिक ही नहीं होती है, बल्कि यह मानसिक रूप से भी गहरा असर डालती है। स्प्रिंगर नेचर में प्रकाशित 2024 की एक स्टडी के अनुसार, स्कोलियोसिस से जूझ रहे 58% युवा मानसिक समस्याओं जैसे एंग्जाइटी, डिप्रेशन, आत्मविश्वास की कमी और खानपान से जुड़ी परेशानियों का सामना करते हैं।
आद्या की मां ने बताया, “शुरुआत में हमें लगा कि उसकी कमर का झुकाव बस खराब बैठने की आदत की वजह से है। हमें अंदाज़ा भी नहीं था कि यह इतनी गंभीर बीमारी हो सकती है। ‘स्कोलियोसिस’ शब्द सुनकर ही डर लगने लगा था और बोर्ड एग्जाम के समय सर्जरी करवाना तो सोचना भी मुश्किल था। लेकिन आज जब उसे सीधा चलते और मुस्कराते देखते हैं, तो यकीन हो गया कि हमने सही फैसला लिया था।”
स्कोलियोसिस का प्रचलन ज्यादा है लेकिन इसके बावजूद करीब 80% केसों का कारण अब तक पता नहीं चल पाया है, इसलिए इसका जल्दी पता चलना बेहद जरूरी है। लेकिन जागरूकता की कमी और स्कूलों में नियमित जांच न होने की वजह से ज़्यादातर केसों का देर से पता चलता है।
डॉ. सूरी ने कहा, “हर माता-पिता और हर स्कूल टीचर को यह पता होना चाहिए कि स्कोलियोसिस दिखता कैसा है। अगर समय पर पहचान हो जाए, तो बच्चों को सालों की शारीरिक और मानसिक तकलीफ से बचाया जा सकता है।
फरीदाबाद स्थित अमृता अस्पताल अपने सेंटर फॉर स्पाइन एंड ऑर्थोपेडिक एक्सीलेंस के जरिए रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारियों का अत्याधुनिक इलाज प्रदान कर रहा है। यहां एडवांस्ड सर्जरी तकनीकों के साथ-साथ बच्चों के अनुकूल और सहानुभूति वाली रिकवरी प्रक्रिया अपनाई जाती है।

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